Dhirajkant - वक्त का ये परिंदा रूका है कहां
वक़्त का ये परिंदा रुका है कहाँ, मैं था पागल जो इसको बुलाता रहा।। चार पैसे कमाने मैं आया शहर, गाँव मेरा मुझे याद आता रहा।।
ख़ास कर जो परदेस में रहते हैं, वो इस ग़ज़ल को ज़रूर सुनें और शेयर करें...
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